पीछे रेडियो पे गाना चल रहा है.... हाथ थे मिले की जुल्फ चाँद की सवार दूँ होठ थे खुले की हर बहार को पुकार दूँ दर्द था दिया गया की हर दुःखी को प्यार दूँ और सांस यों की स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ और मैं सोच रहा हूँ.... जो यकीनन पाया उसका , जो शायद पाया होगा उसका भी , जो पा सकते थे... नही पाया , लेकिन उसकी जानिब दो कदम चले तो सही इसी खुशी का एहसास , खुद ही खुद को , बिना-थके , दिलाते रहने का ही जश्न मनाने के इस ...
Extroversions of an Introvert Mind